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500 साल पुरानी विरासत

धनंजय सिंह का जन्म 4 मई 1986 को खींवसर परिवार में इसके 20वें वंशज के रूप में हुआ था। ये भारत के राजपूत राजवंशों की अंतिम पीढ़ियों में से एक माने जाते हैं, खींवसर राठौड़ों के करमसोथ संप्रदाय का निवास स्थान है, जिसकी शुरूआत राव जोधा से उत्पन्न हुई थी, जब 1523 ईस्वी में, उनके पुत्रों में से एक, राव करमसीजी ने खींवसर के रूप में अपने भविष्य को देखा था । राव जोधा जोधपुर (मारवाड़) के प्रख्यात संस्थापक और राठौड़ों के तत्कालीन मुखिया थे। आसपास के प्रांतों में राठौड़ों की प्रतिष्ठा को मजबूत करने के प्रयास में, उनके बेटे अपने पिता के कहने पर निकल पड़े। जो कभी क्षेमसर था वह अब भारत का प्रमुख हेरिटेज होटल डेस्टिनेशन और राजस्थान के सबसे तेजी से विकसित हो रहे ग्रामीण गलियारे में से एक है, और व्यापारिक तथा वाणिज्यिक दृष्टि से परिपूर्ण हो गया है ।
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उन दिनों में, शक्तिशाली राठौड़ों ने शेर शाह सूरी, कामरान मिर्जा (मुगल सम्राट हुमायूं के भाई) और उसके बाद हुए मुगल आक्रमणों के विरूद्ध अपनी अद्वितीय युद्धकालीन विरासत की कमान संभाली, उनके करमसोठ भाइयों ने शांति वार्ता और कई रणनीति गठबंधन के अग्रदूत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। करमसीजी की 20 पीढ़ियों में कई वीर योद्धा और विवेकपूर्ण राजनेता, दूरदृष्टा और बड़े उद्यमी हुए हैं। उदाहरण के लिए, खींवसर के नौवें वंशज, जोरावर सिंह जी ने जोधपुर और बीकानेर के बीच शांति वार्ता के लिए अपना पूरा जीवन घर से दूर बिताया। गोडवार को मारवाड़ के नक्शे में शामिल करने में उनकी अग्रणी भूमिका थी और वह दुर्जेय मराठा सेना द्वारा सबसे अधिक सम्मानित राजपूतों में से एक थे। इतिहास बार-बार खुद को दोहराता है, खींवसर को अक्सर अपने युद्धरत भाइयों के बीच शांति स्थापित करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा। औपनिवेशिक काल की अँधेरी रात में भी, राजा केसरी सिंहजी ने खींवसर के लिए सभी बाधाओं का सामना किया। अपनी मातृभूमि के लिए उनका प्यार इतना अधिक था कि उन्होंने खींवसर पर अपनी संप्रभुता को त्याग दिया ताकि वह इसे अपने नाबालिग पुत्र ओंकार सिंहजी को सौंप सके, जिसके उस समय 18 वर्ष का होने में कुछ महीने शेष थे। बड़े होने पर, राजा ओंकार सिंहजी ने एक प्रमुख राजनायक और राजनेता के रूप में राजस्थान की सेवा की, जिसको आगे बढ़ाने वाले उनके पुत्र राजा गजेंद्र सिंहजी को उनकी राजनीतिक सेवाओँ के लिए किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। उस विरासत के अनुरूप, धनंजय सिंह एक उज्ज्वल व्यवसायी एवं वक्ता हैं और विंटेज ऑटोमोबाइल के भारत के प्रमुख पारखी भी हैं।

अजमेर के मेयो कॉलेज में अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, धनंजय ने स्विट्जरलैंड की प्रतिष्ठित इकोले होटलियर डी ग्लयान में अपनी जगह बनाने से पहले ऑस्ट्रेलिया के एक विश्वविद्यालय में अपना संक्षिप्त कार्यकाल पूरा किया। वहां से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद नव उद्यमी होटल के मुख्य निदेशकों में से एक के रूप में खींवसर में अपने पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बंटाने के लिए अपनी मातृभूमि लौट आये। धनंजय ने राजनीति और युवा नेतृत्व के क्षेत्र में एक विशेष आकर्षण महसूस किया, जिसमें उन्होंने अपने पिता के कई चुनावी अभियानों और भारतीय जनता पार्टी के बड़े राजनीतिक प्रचार के लिए जबरदस्त युवा समर्थन प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त धनंजय अन्नदाता चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक भी हैं।

राज्य की सीमाओं के पार खींवसर के कई वैवाहिक गठबंधनों की वजह से, यहाँ के बच्चों को कई संस्कृतियों के संपर्क में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है- चाहे वह धनंजय की नानी का घर बुंदेलखंड हो, या उनकी दादी का घर पुंछ हो। परिवार की पिछली पीढ़ियां घबाना, मेहरू, मेजा और हाल ही में सौराष्ट्र के परिवारों से रक्तसंबंधों से जुड़ी हैं, जिस भूमि ने धनंजय की माँ और पत्नी दोनों को जन्म दिया। सही मायने में विश्ववादी, खींवसर राज परिवार की संतान] पहाड़ों से भी उतने ही जुड़े हैं, जितने कि शुष्क रेगिस्तान से। वे मध्य भारत की घाटियों से उतने ही जुड़े है, जितने मध्य गुजरात की विविधतापूर्ण संस्कृति से।

Family Tree_Rao Karamsi Ji

धनंजय इस विशिष्ट ऐतिहासिक प्रगति का एक जीवित उदाहरण है, जहाँ अपने पूर्वजो की प्राचीन संस्कृति को न तो भुलाया जाता है ना छोड़ा जाता है। बल्कि, वह परंपरागत रीति रिवाजों को अपने आचरण में शामिल करते हैं। साथ ही, उनकी दृष्टि नई खोज और विकास के लिए नए क्षेत्रों को दर्शाती है।  

2012 में, धनंजय ने अपनी जीवनसंगिनी राजकोट की सबसे बड़ी जडेजा राजकुमारी, मृगेशा कुमारी से विवाह किया। परोपकारी और सांस्कृतिक प्रतीक, मृगेशा अपने पति की सफलता में वृद्धि करने हेतु एक महत्वपूर्ण स्तम्भ प्रतीत होती हैं । साथ में, उन्होंने तीन सुन्दर और चंचल बच्चों – मृगनयनी, शिवगामी और संग्राम को जन्म दिया है, जिनसे खींवसर की अगली पीढ़ी है ।

वह आधुनिक राजपूत वंशजों की वंशानुगत वफादारी और अपने लोगों के साथ उनके सहज संबंध का एक जीवंत उदाहरण है।


लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में में भारत की तीव्र प्रगति और बाद में शाही उपाधियों और प्रिवी पर्स का उन्मूलन किए जाने से राजपूतों की सामाजिक व्यवस्था के भीतर सदियों से चली आ रही स्थिति को बनाये रखने में एक गंभीर बाधा आई।

 
लेकिन भारत के तत्कालीन राजपुताना के कुछ चुनिंदा परिवारों के लिए, यह सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन एक वास्तविक विसंगति के रूप में सामने आया। आतिथ्य और राजनीति के क्षेत्र में खींवसर का तेजी से पुन: अनुकूलन उतना ही सुरुचिपूर्ण था जितना कि इसकी अविरल जीत में सहायक।

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